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पत्र.क्र. ६१

*© श्रीधर संदेश*

*श्रीक्षेत्र काशी में श्रीमत् प. प. सद्गुरु भगवान श्रीधरस्वामी महाराज का सौ.सावित्री भागवत को दिया हुआ दिव्य-संदेश*

मगू | ब्रह्म जैसे असंग निर्विकार, निरोग स्वतःपूर्ण अद्वितीय आनन्दरूप है, वैसे ही ज्ञानियों को भी रहना चाहिये।

ज्ञानियों को जगत् कार्य के लिये सुदृढ देह, स्थितप्रज्ञता, जगत में आदर्श जीवन, पारमार्थिक पथ का दिग्दर्शन कराने योग्य सम्पूर्ण गुणशील इत्यादि रहने से ही जगत का कार्य होगा । तुम सब भी उपरोक्त गुणों से सम्पन्न रहो यही मेरी इच्छा है, और मेरा आशीर्वाद है।

मगा ! तुमको शारीरिक व्याधी से कष्ट जरूर होता होगा । मैं अपनी तरफ से प्रयत्न करके सब बाधाओं को निकाला हुआ तुम्हारा आरोग्य निरन्तर मैं भी चाहता हूं, अगर तुमको व्याधी से कष्ट हो जाय तो वह कष्ट मुझको ही होगा। मुन्नी ! बालक का कष्ट, बालक को न होकर माँ को ही होता है, माँ बालक का सम्पूर्ण कष्ट और उसके जीवन का सारा बोझ अपने ऊपर लेती हैं। पालने में पड़े हुये नन्हे से बालक की सर्वतोपरि उसके देहपात होने तक की चिन्ता माँ को रहती है। मां को बच्चे के प्रति प्रेम करना सिखाना नही पडता, वैसे ही गुरुनाथ तुम सब भक्तों का सम्पूर्ण जीवन का इहलोक और परलोक, दोनों का बोझ अपने पर लेकर प्रतिक्षण अपने भक्तों की रक्षा करते रहते है। गुरुनाथ चाहे दूर रहे, चाहे पास, अपने प्यारे भक्तों को अपनी गोद से नीचे उतारते ही नहि । गुरुनाथ सर्वत्र व्यापक, अपनी तपोमय महान शक्ती से भक्त की रक्षा करते हुये, उसके पीछे ही खडे रहते हैं।

ज्ञान की दृष्टि से शरीर का कोई अस्तित्व ही नहीं है। और माता पिताके मलरूप स्वप्न दृष्य के समान असत्य तथा आभासात्मक यह देह आज ही चली जाय या रह जाय, ज्ञानी सदा विदेह रूप से ही रहता है।

देखो! निरन्तर ब्रह्म की धारणा को बढाते जाओ, इसी से तेरा स्वास्थ्य ठीक रहेगा । यदि औषध, मंत्र आदिसे रोग ठीक हो जाता है, तो नित्यानंद स्वरूप की धारणा से क्यों नहि ठीक होगा? ठीक होगा ही सही। ब्रह्मसत्ता का एक लवलेश अस्तित्व मंत्र, तंत्र औषधि आदि यों में रहने से इसकी इतनी शक्ति बढ़ गई, तो साक्षात अहंब्रम्हास्मि की धारणा से क्या नहि हो सकता ? सम्पूर्ण मणियंत्र औषधी आदियों से जो लाभ होता है सो अखण्ड स्वरूप मी धारणासे ही हो सकता है।

*श्रीधरस्वामी*

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