*© श्रीधर संदेश*
*श्रीमत् परमहंस परिव्राजकाचार्य सद्गुरु भगवान श्रीधरस्वामी महाराज का चातुर्मासके शुभ अवसर पर दिव्य संदेश*
*सज्जनगड*
*आषाढ शु।। १२ शके १८८२*
*मेरे प्यारे भक्तगण ।*
मुझे तो तुम सभी के वह मंगलमय नामरूप मानो, उस अनंतानंत भगवत्प्रेमके निरवधी आनंदरससे बने पवित्र पुतले ही दिखाई देते है। उस अमरप्रकाश चिदरूप परमात्माकी तुम सब आनंदरूप किरणें ही हो, ऐसा मुझे ज्ञात होता है । कहूं तो ऐसा भी हो सकता है कि तुम सब उस आनंद महोदधि परमात्माकी खेलती हुई प्रेम लहरियाँ ही हो । यदि मैं तुम्हे परमात्मरूप उस मनोहर अति सुंदर पुष्पवाटिकाके हँस रहे उत्फुल्ल सुखमय पुष्प कहूँ, तो ऐसा भी हो सकता है।
बालकों ! तुम्हारे हृदयरूप क्षितिजसे ऊपर आनंदरूप आत्मसूर्यकी उन सुखमय बाल किरणोंसे जगदूरूप सरोवरकी अखिल मानव कमल कलियाँ धीरे धीरे खिलकर आनंद दे रही है। ऐसे ही तुम सब उस अनंतानंत आनंद महोदधिरूप परमात्माकी पवित्र नदीयाकी तरह एकरूप हो, अपना दिव्य जीवन बिताओ । पूर्णचंद्रके दर्शनसे जैसे की समुद्र उछल आता है उसी तरह तुम्हारे श्रिय दर्शनसे आनंदरूप, मंगलधाम श्रीशिवजीका हृदय आरहा है, और उस प्रेमभरे नेत्रोंसे मानो, अमृतधाराएँ बरस रही है । जैसे की दिनमें सूर्य प्रकाश सर्वत्र व्याप्त हो सभी ओर आनंद देता है, उसी तरह मंगलमय तुम्हारा आदर्श जीवन सर्वत्र व्याप्त हो, सभी विश्वमें पवित्र आत्मानंदका फैलाव हो।
*सर्वे जनाः सुखिनो भवन्तु ।*
*इतिशम्*
*श्रीधरस्वामी*